ऐसे चाचा हर भतीजे को मिले
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ऐसे भतीजे हर चाचा को मिले
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आज मैं आप सबके सामने ना कोई सामाजिक और ना ही राजकीय विषय लेकर आया हूं। बल्कि मेरे साड़ू भाई के छोटे भाई और उनके भतीजे यानी मेरे भांजोंके बारे में कुछ लिखने की कोशिश कर रहा हूंँ। उम्मीद है पढ़ने वालों को अच्छा लगेगा। तो चलिए शुरू करता हूँ ...........
मेरे बड़े साड़ू भाई हैं जनाब गाज़ी मियां काज़ी साहब जो अहेमदनगर जिले के शेवगाव तालुका में रहते हैं। उनके छोटे भाई हैं जनाब एजाज़ काज़ी साहब। इस रिश्ते से देखा जाए तो वह मेरे भाई ही होते है। लेकिन मेरे साड़ू भाई के पांँच लड़कों के वह चाचा है। और इन चाचा और भतीजों की आपस की बॉन्डिंग-अंडरस्टैंडिंग यानी आपसी जुड़ाव और तालमेल को देखते हुए मुझे भी उन्हें चाचा कहने में ही बड़ी खुशी हो रही है।
वैसे देखा जाए तो चार महीने पहले तक मेरी साली साहिबा, साड़ू भाई, एजाज़ चाचा और मेरे बड़े भांजे हारून को छोड़ दिया जाए तो बाकी सब के लिए मैं अजनबी ही था। पहली मर्तबा जब शेवगाव उनके घर गया तब जान-पहचान हुई। और मेरे छोटे भांजे रमीज़ की शादी की बात चली तो लड़की ढूंढने की चर्चा हुई। इसके बाद मैंने मेरे मुंँह बोले खलेरे भाई अब्दुल रऊफ़ साहब की लड़की यानी मेरी भतीजी से रिश्ते की बात चलाई। अल्लाह के करम से दोनों तरफ के लोगों को यह रिश्ता जच गया और उस पर पसंद की मुहर लगी। एक महीने के भितर ही 22 मार्च को भांजे और भतीजी की शादी बड़े ही खुश ओ खुर्रम माहौल में हूई। इस शादी का अल्लाह ताला के पास हमें अजर मिलेगा ही।
इस रिश्ते की बात को शुरू करने से लेकर शादी के अंजाम तक पहुंँचाते वक्त मैंने देखा की शादी भले ही भतीजे की हो लेकिन एजाज़ चाचा सिर्फ़ चाचा बनकर नहीं बल्कि होल एंड सोल की तरह हर बात को जिम्मेदारी के साथ अंजाम दे रहे थे। साड़ू भाई की मर्जी, उनका कहा सर आंँखों पर रखते हुए भतीजों की राय को भी बड़े ही ध्यान से और अपनेपन से अंजाम दे रहे थे। किसी को कोई शिकायत ना रहे, कोई नाराज ना हो इस तरह से चाचा काम कर रहे थे। यह सब करते हुए ना तो किसी पर कभी चिढ़ते दिखे, ना कभी गुस्सा हुए। बल्कि हमेशा हर एक के साथ हंँस बोलकर बड़े ही मान-मर्तबे के साथ पेश आ रहे थे।
वलीमा वाले दिन तो उनकी भागदौड़ और दगदग को देखते हुए जब मैं एजाज़ चाचा और उनके भतीजों यानी मेरे भांजोंको देख रहा था तब मेरी आंँखें बार-बार गीली हो रही थी। वलीमा वाले दिन मैं सुबह से लेकर शाम को शेवगाव से वापस बीड़ के लिए रवाना होने तक कई बार रोया। लेकिन ऐसा रोना पड़ा की, किसी को मेरी आंँखों से आंँसू निकलते ना दिखें। इस बात का ध्यान रखते हुए रोया। कुछ ऐसा कहूंँ तो गलत ना होगा की चाचा को और उनके काम को देखते हुए आंँखों के साथ ही दिल से रोया। यह रोना खुशी का था। दिल रो रहा था, आंँखें नम हो रही थी। लेकिन उससे कहीं ज्यादा इस बात की खुशी हो रही थी कि, मेरे भांजो को मेरे साड़ू भाई और साली साहिबा यानी उनके मांँ-बाप के अलावा दिलोंजान लगाने वाला, जाँ निछावर करने वाला और भी कोई है। इसलिए बेहद खुशी भी हुई। जब मैं शेवगाव से रवाना होने के लिए निकला तब रुख़सती के वक्त भरे हुए दिल और गले से चाचा से गले मिलकर सिर्फ इतना ही कह सका की, "ऐसे चाचा हर भतीजे को मिले"। इसके बाद जो भांजे सामने थे उनको देखकर भी दिल ने यह भी कहा कि, "ऐसे भतीजे भी हर चाचा को मिले"।
पाक परवरदिगार दोनों जहांँ के मालिक अल्लाह तआला से तहेदिल से दुआएं हैं की, वह ता उम्र इसी तरह मेरे भांजे और एजाज़ चाचा में ऐसे ही प्यार, मुहब्बत, खुलूस, अपनापन बरकरार रखें।
🤲 आमीन 🤲
🤲 सुम्मा आमीन 🤲
और साड़ू भाई ने भी जिस तरह अपनी बीवी, बच्चे, भाई, भाभी, बहन, बहनोई, भतीजे, भतीजी, भांजे, भांजीयो, पोते, पोतियाँ, नवासे, नवासियाँ को जिस तरह दिल लगाकर आज तक रखा है, इसी तरह ता कयामत तक काज़ी घराना आपसी मेलजोल, तालमेल, प्यार, मुहब्बत, ख़ुलूस, अपनापन क़ायम रखें।
🤲 आमीन 🤲
🤲 सुम्मा आमीन 🤲
और हांँ, आखिर में और एक बात कहना चाहूंगा कि, इन सब मर्दों के पीछे इनके घर की औरतें भी उतनी ही प्यार, मुहब्बत, ख़ुलूस वाली होंगी। जिनमें दादीजान, हमारी साली साहिबा और चाची का भी बड़ा रोल होगा। जो सब मिलकर एक छत के नीचे बड़े ही प्यार-मुहब्बत से रहते हैं। अब दादी की पोतर और साली साहिबा की बहुओं ने भी आगे चलकर ऐसे ही एकजुटता के साथ हमेशा घर को खुशियों से भरा रखें।
🤲 आमीन 🤲
🤲 सुम्मा आमीन 🤲
आपका अपना
आसेफ़नगर, बीड़।
9021 02 3121.
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