Breaking News

बीडवासीयों और चौदह महीने के वनवास को बरदाश्त करो - एस.एम.युसूफ

बीडवासीयों और चौदह महीने के वनवास को बरदाश्त करो - एस.एम.युसूफ 

बीड (संवाददाता) - पिछले 46 महीनों में शहर की खराब स्थिति के कारण, नागरिक शहर में होने के बावजूद वनवास का अनुभव कर रहे हैं।  इस वनवास के अंत को अभी और 14 महीने बाकी हैं। तबतक बरदाश्त करो, ऐसी अपील पत्रकार एस.एम.युसूफ ने दिये पत्रक द्वारा की है।            
       पत्रक मे कहा है की, पिछले चुनाव में, मतदाताओं ने 27 नवंबर, 2016 को बीड नगर परिषद के लिए अपने वोट डाले। पहली बार चुनाव लड़़ रही काकू-नाना विकास आघाडी के 20 पार्षदों को मतदाताओं ने काकू-नाना विकास आघाड़ी की झोली मे ड़ाला। हालांकि नगराध्यक्ष भी बहुत पीछे नहीं रहे। उन्होंने भी अपने नगराध्यक्ष पद के साथ ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से 19 पार्षदों को चुनाव जितवाया। इन दोनों प्रतिद्वंद्वियों के अलावा ए.आई.एम.आई.एम.  पार्टी ने पहले प्रयास में ही अपने 9 पार्षदों को चुनावी जीत का स्वाद  चखाया। जिससे बीड के नामीगिरामी राजनेताओं को अपने मुंह में अंगुलियां ड़ालनी पड़ी।  बीड नगर परिषद में कुल 50 पार्षद हैं। लेकिन किसी भी प्रतिद्वंद्वी को स्पष्ट बहुमत न मिलने से स्थिति मिश्रित हो गई।  बीड नगर परिषद के मतदाताओं का दुर्भाग्य यहीं से शुरू हुआ।  परिणाम के बाद बहुत अधिक ब्योपार हुआ और तगड़े नगराध्यक्ष के विरोध में ए.आई.एम.आई.एम. पार्टी ने अपने 9 पार्षदोंकों पत्थर से ईट नर्म के तर्जपर काकू-नाना विकास आघाड़ी के पाले में डाल दिया। लेकिन मूल रूप से हर कोई अलग-अलग तरह की सोच रखनेवालों का यह दोस्ताना जल्द ही टुट गया। चुनकर आए प्रतिद्वंद्वी नगरसेवकों की महत्वाकांक्षाएं अलग-अलग थी। इसलिए कुछ पार्षदों ने आघाड़ी को छोड़कर अपनी ही पार्टी के खिलाफ जाकर नगराध्यक्ष के समर्थन में खड़े हो गए। किसी तरह उनके साथ संसार चल रहा था की, विधानसभा चुनाव आ गए। और जैसे ही तत्कालीन विधायक और वर्तमान नगराध्यक्ष इन दोनों चाचाओं को एहसास हुआ की, उनका भतीजा जो काकू-नाना आघाड़ी का गठन कर्ता है वह आनेवाले विधानसभा में उन्हें कड़ी टक्कर देने की ताकत रखता है। तब तत्कालीन विधायक चाचा ने अपना रुख बदलते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को छोड़ शिवसेना में प्रवेश कर विधानसभा चुनाव के लिए टिकट हासिल कर लिया। उनके इस रुख से उनके साथ गए ए.आई.एम.आई.एम. के पार्षद सक़्ते मे आ गये। लेकीन फिर भी कुछ उनके साथ रहे और कुछ छोड़कर चले गये। बीड़ नगर परिषद के लिए मतदाताओं ने विद्यमान नगराध्यक्ष को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनकर दिया था। लेकीन उनके बड़े भाई शिवसेना निवासी हो जानेपर भी वह उनके प्रति वफादार रहे है। पर उन्होंने अभी तक यह घोषणा नहीं की है कि उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी छोड़ दी है या शिवसेना में शामिल हो गए हैं। इसलिए अब उनकी हालत भी पार्षदों जैसी है। अब न तो वह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और न ही शिवसेना के ऐसी स्थिति में है। दूसरी ओर काकू-नाना विकास आघाड़ी का गठन करने वाले नवागंतुक भिडू को विधानसभा चुनाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से विधायक पद मिला। उनके आघाड़ी से चुने गए 20 पार्षद अब आघाड़ी के है या राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के ? इसका जवाब विद्यमान विधायक द्वारा काकू-नाना विकास आघाड़ी के रचयिता के रूप में उन्हें मतदाताओं को देना चाहिए। ऐसे ही राष्ट्रवादी से चुनकर आए 19 पार्षद भी अब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के हैं या फिर शिवसेना के इसका जवाब भी विद्यमान नगराध्यक्ष ने देना चाहिए। इन दोनों प्रतिद्वंद्वी से अलग हालत ए.आई.एम.आई.एम. के पार्षदों की भी नहीं है। वह तो किसी के भी नहीं रहे हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, काकू-नाना विकास आघाडी, शिवसेना और ए.आई.एम.आई.एम. के कारण बीड शहर बहुत पिछड़ गया है और शहर पूरी तरह से खराब हो गया है।  इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता। इन तीन प्रतियोगियों ने बीड नगर परिषद में पिछले 46 महीनों (3 साल, 10 महीने) मे जो खेल खेला है, उससे शहर की हालत खराब हो गई है। नगराध्यक्ष इन तीन प्रतिद्वंद्वि पार्षदों के साथ मिलकर शहर की खराब हालत को देखने, उसे दुर करने की कोशिश नहीं की और न ही कर रहे हैं। इसलिए पिछले 46 महीनों में, बीड को गड्ढों का शहर, गन्दगी का शहर और कीचड़ वाला शहर कहा जाने लगा है।  यह मामला उन मतदाताओं का दुर्भाग्य है जिन्होंने इन सभी को वोट दिया। इस दुर्भाग्य का मतलब है कि, इन मतदाताओं को नगराध्यक्ष सहित सभी पार्षदोंके कारण मिले हुए वनवास को खत्म होने अभी और 14 महीने बाकी हैं। तब तक इसे बर्दाश्त करो। ऐसी अपील पत्रकार एस.एम.युसूफ ने दिये पत्रक मे की है।

आपका अपना
एस.एम.युसूफ,
पत्रकार, बीड।
संपर्क - 9021 02 3121

कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत